ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही!
ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही!ओ अमलताश की अमलकलीधरती के आतप से जलतेमन पर छाई निर्मल बदली.मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगातुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगातुम कल्पव्रक्ष का फूल औरमैं धरती का अदना गायकतुम जीवन के उपभोग योग्यमैं नहीं स्वयं अपने लायकतुम नहीं अधूरी गजल शुभेतुम शाम गान सी पावन…