Mahadevi Varma

मेरे दीपक

मधुर मधुर मेरे दीपक जल!युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल;प्रियतम का पथ आलोकित कर!सौरभ फैला विपुल धूप बन;मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन;दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,तेरे जीवन का अणु गल-गल!पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!सारे शीतल कोमल नूतन,माँग रहे तुझको ज्वाला-कण;विश्वशलभ सिर धुन कहता ‘मैंहाय न जल पाया तुझमें मिल’!सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!जलते नभ में देख असंख्यक;स्नेहहीन…

Why an introduction dear, you are within me,

creations of life in short spells, eyes noticecreations of life in short spells, eyes noticegentle footsteps!I don’t much to treasure anymore,you are the treasure I have in me.Your dazzling, radiant smile like sunriseIs the reflection of fragrant sorrow,it is consciousness, and dreamy slumber,Let me tire and sleep incessantly, forWould I understand the creation, big-bang! !You…

कहां रहेगी चिड़िया ?

डाली टूटी है झकोर सेउड़ा घोंसला बेचारी काकिससे अपनी बात कहेगीअब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?घर में पेड़ कहाँ से लाएँकैसे यह घोंसला बनाएँकैसे फूटे अंडे जोड़ेंकिससे यह सब बात कहेगीअब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?

दीप मेरे जल अकम्पित,

सिन्धु का उच्छवास घन है,तड़ित, तम का विकल मन है,भीति क्या नभ है व्यथा काआंसुओं से सिक्त अंचल!स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,मीड़, सब भू की शिरायें,गा रहे आंधी-प्रलयतेरे लिये ही आज मंगलमोह क्या निशि के वरों का,शलभ के झुलसे परों कासाथ अक्षय ज्वाल कातू ले चला अनमोल सम्बल!पथ न भूले, एक पग भी,घर न खोये, लघु विहग…

उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,

अश्रु से गीला सृजन-पल,औ’ विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,आ रही अविराम मिट मिटस्वजन ओर समीप सी मैं!सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,छांह से भर प्राण उन्मन,तम-जलधि में नेह का मोतीरचूंगी सीप सी मैं!धूप-सा तन दीप सी मैं!

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

प्रियतम का पथ आलोकित कर!सौरभ फैला विपुल धूप बनमृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,तेरे जीवन का अणु गल-गलपुलक-पुलक मेरे दीपक जल!तारे शीतल कोमल नूतनमाँग रहे तुझसे ज्वाला कण;विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैंहाय, न जल पाया तुझमें मिल!सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!जलते नभ में देख असंख्यकस्नेह-हीन नित कितने दीपकजलमय सागर का उर जलता;विद्युत ले…

कितनी करूणा कितने संदेश

गाता प्राणों का तार तारअनुराग भरा उन्माद रागआँसू लेते वे पथ पखारजो तुम आ जाते एक बारहंस उठते पल में आर्द्र नयनधुल जाता होठों से विषादछा जाता जीवन में बसंतलुट जाता चिर संचित विरागआँखें देतीं सर्वस्व वारजो तुम आ जाते एक बार

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

नयनों में दीपक से जलते,पलकों में निर्झणी मचली!मेरा पग पग संगीत भरा,श्वासों में स्वप्न पराग झरा,नभ के नव रंग बुनते दुकूल,छाया में मलय बयार पली!मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,चिंता का भार बनी अविरल,रज-कण पर जल-कण हो बरसी,नव जीवन-अंकुर बन निकली!पथ न मलिन करता आना,पद चिह्न न दे जाता जाना,सुधि मेरे आगम की जग में,सुख…

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छायाजाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!जाग तुझको दूर जाना!बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?पंथ की…